नई दिल्ली, 12 सितंबर। भारतीय शास्त्रीय संगीत को अंतरराष्ट्रीय पहचान दिलाने वाली प्रसिद्ध गायिका डॉ. प्रभा अत्रे ने संगीत के प्रति अपने गहरे प्रेम को हमेशा जिया। उनका मानना था कि शास्त्रीय संगीत को समझने के लिए गहन अध्ययन और अभ्यास आवश्यक है।
डॉ. अत्रे की गायकी के प्रति लोगों का आकर्षण इतना था कि इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र में उनके कार्यक्रमों में भारी भीड़ जुटती थी। उन्होंने एक बार कहा था, “सुरों की साधना एक क्षणिक लकीर की तरह होती है, जो उठते ही मिट सकती है।”
प्रभा अत्रे का जन्म 13 सितंबर 1932 को पुणे में हुआ। उन्होंने पुणे के आईएलएस लॉ कॉलेज से कानून में स्नातक की डिग्री प्राप्त की, लेकिन संगीत के प्रति अपने जुनून के चलते उन्होंने डॉक्टरेट की उपाधि भी हासिल की।
संगीत की बारीकियों को समझने के लिए उन्होंने कई दिग्गज संगीतकारों से शिक्षा ली। डॉ. अत्रे ने कहा कि वे अपने बचपन से ही इन महान कलाकारों की गायकी को सुनती आ रही थीं।
वे अपने गुरुओं के प्रति हमेशा आभार व्यक्त करती थीं, यह मानते हुए कि उनके योगदान के बिना वे आज इस मुकाम पर नहीं होतीं।
शास्त्रीय संगीत को बढ़ावा देने के लिए उन्होंने स्वरमयी गुरुकुल की स्थापना की और आकाशवाणी में भी कार्य किया। इसके अलावा, मुंबई के एसएनडीटी महिला विश्वविद्यालय में प्रोफेसर और संगीत विभाग की प्रमुख के रूप में भी उन्होंने कार्य किया।
उनकी संगीत यात्रा में उन्हें कई पुरस्कार मिले, जिनमें पद्मश्री (1990), पद्म भूषण (2002) और 2022 में पद्म विभूषण शामिल हैं। उनके नाम एक चरण से 11 पुस्तकें प्रकाशित करने का विश्व रिकॉर्ड भी है।
उनकी मधुर आवाज और सुरों पर नियंत्रण ने उन्हें संगीत प्रेमियों के दिलों में एक विशेष स्थान दिलाया। डॉ. प्रभा अत्रे की प्रतिभा ने उन्हें अपने समय की सर्वश्रेष्ठ कलाकारों में से एक बना दिया।
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